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राहें बड़ी कठिन जीवन की / गिरधारी सिंह गहलोत

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राहें बड़ी कठिन जीवन की,
छोड़ मुझे मत जाना साथी
  
कुसुमों के लालन पालन में
यौवन के दिन बीत गए हैं
धीरे धीरे अनजाने कब
आयु के घट रीत गए हैं
कैसा भी मौसम आया पर
हर पल हर क्षण लड़ना सीखा
हालातों से हार न मानी
बाधाओं से जीत गए हैं
प्रीत बनी आधार हमेशा
जुड़ा रहा ये अनुपम बंधन
दिन गुजरे हैं सदा प्रीत का
बुनकर तानाबाना साथी
   
राहें बड़ी कठिन....
   
जीवन की संध्या बेला है,
घड़ी परीक्षा की अब आई
जैसा भी माहौल मिले आ
 करें समय से हाथापाई
पुत्र गए परदेश कमाने
और सुता है पी के घर अब
 बन कर ही अवलम्ब परस्पर
दूर कर सकें ये तन्हाई
चाहे दुख की छाई बदली
उमड़ा सुख का कभी समंदर
 अब तक साथ निभाते आये ,
थोड़ा और निभाना साथी
  
राहें बड़ी कठिन ......
  
की शुरुआत जहाँ से हमने
लो वैसे ही दिन फिर आये
फिर से उन एकांत पलों की
सुधियों के बादल घिर आये
प्रीत मानती कहाँ प्रिये ! कब
बढ़ती आयु का ये बंधन
रहे अधूरे अब तक हैं जो
नयनों में सपने तिर आये
संबल लेकर विश्वासों का
भर कर नया रंग आशा का
 पुनः करें आरम्भ प्यार का
भूला वह अफसाना साथी
   
राहें बड़ी कठिन जीवन की,
छोड़ मुझे मत जाना साथी