भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रिश्ते-1 / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
अलगे-से चुपचाप चल रहे
 
अलगे-से चुपचाप चल रहे
 
ये पल दो पल के रिश्ते  
 
ये पल दो पल के रिश्ते  
 
  
 
कभी गाँठ से बंध जाते हैं
 
कभी गाँठ से बंध जाते हैं
पंक्ति 15: पंक्ति 14:
 
कब छाया कब चीरहरण, हो
 
कब छाया कब चीरहरण, हो
 
जाते आँचल के रिश्ते
 
जाते आँचल के रिश्ते
 
  
 
आते हैं सूरज बन, सूने
 
आते हैं सूरज बन, सूने
पंक्ति 21: पंक्ति 19:
 
आँज अँधेरा भरते आँखें
 
आँज अँधेरा भरते आँखें
 
छल-छल ये छल के रिश्ते
 
छल-छल ये छल के रिश्ते
 
  
 
कच्चे धागों के बंधन तो
 
कच्चे धागों के बंधन तो
पंक्ति 27: पंक्ति 24:
 
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं  
 
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं  
 
टूटे साँकल के रिश्ते
 
टूटे साँकल के रिश्ते
 
  
 
एक सफेदी की चादर ने
 
एक सफेदी की चादर ने
पंक्ति 33: पंक्ति 29:
 
आज अमंगल और अपशकुन
 
आज अमंगल और अपशकुन
 
कल के मंगल के रिश्ते
 
कल के मंगल के रिश्ते
 +
</poem>

11:06, 16 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

रूठें कैसे नहीं बचे अब
मान मनोव्वल के रिश्ते
अलगे-से चुपचाप चल रहे
ये पल दो पल के रिश्ते

कभी गाँठ से बंध जाते हैं
कभी गाँठ बन जाते हैं
कब छाया कब चीरहरण, हो
जाते आँचल के रिश्ते

आते हैं सूरज बन, सूने
में चह-चह भर जाते हैं
आँज अँधेरा भरते आँखें
छल-छल ये छल के रिश्ते

कच्चे धागों के बंधन तो
जनम-जनम पक्के निकले
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं
टूटे साँकल के रिश्ते

एक सफेदी की चादर ने
सारे रंगों को निगला
आज अमंगल और अपशकुन
कल के मंगल के रिश्ते