भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
 
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}{{KKAnthologyChand}}
+
}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKAnthologyChand}}
[[Category:गज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है
 +
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है
  
रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है<br>
+
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है<br>
+
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है
  
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया<br>
+
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है<br>
+
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है
  
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई<br>
+
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है<br>
+
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है
  
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है<br>
+
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है<br>
+
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है
 
+
</poem>
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर<br>
+
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है<br>
+

13:24, 19 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है

मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है

मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है

दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है

बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है