भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेडलाईट / निरुपमा सिन्हा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 26 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निरुपमा सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेड लाईट पर
गाड़ी रुकते ही
याचक बन आ जाता
है बचपन!!
दूसरी रेड लाईट
कर चुकी होती है
उसके अनुभवों को जवान
और लगड़ा
परिस्थिति अनुसार!

तीसरे चौराहे की
जलती बुझती बत्तियों के बीच
आ खड़ी होती है
उसकी कतरनों को
कपड़े बना
तिरस्कार को
थूक में मिला
आँखों से बेझिझक
गिराती बेचारगी
जायज़ नाजायज़ के बीच
झूलती बहन!!

चौथी रेड लाईट
आते आते
पूरा कुनबा
खड़ा होता है
बैसाखी पर!

गंतव्य तक पहुँचते –पहुँचते
हमारे पर्स का दबाव कम हो
चुकता है
सिक्के में तुला हमारा धर्म
दान में बदल चुका होता!!
उस समाज को
हम कर चुके होते है
अपाहिज
जहाँ उनका
सदियों से पोलियोग्रस्त रहना
हमारी जीत को संभाले हुए
नज़र आता है!!