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रोज़ बनाता हूँ एक तस्वीर / रवीन्द्र दास

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मैं रोज़ बनाता हूँ -

एक तस्वीर

किसी बहुत बड़े कैनवास पर

कैनवास यानि पूरी दुनिया

आसमान, पहाडी, मैदान, नदियाँ, फूल, घर,

और घरों में खुली-खुली खिड़कियाँ ......

और सबसे आखिर में

देर तक तजवीज़ करके

रखता हूँ ख़ुद को-

अपनी खास पसंदीदा ज़गह पर

लेकिन आँखों से ओझल होते ही तस्वीरों के

बदल जाती है मेरी ज़गह .....

ऐसा ही होता है हर बार,

जब मुझे लगता है

दुनिया वही है जो पहले थी सिर्फ़ बदल दी गई है मेरी ज़गह

मुझसे पूछे बिना

किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच !