भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोटी नईंयाँ पानी नईंयाँ / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 30 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोटी नईंयाँ पानी नईंयाँ
छप्पर नईंयाँ छानी नईंयाँ

हम तौ गंवई गाँव के ठैरे
चंट,चतुर,और ज्ञानी नईंयाँ

जीवे खों तौ सब जी रये हैं
जीवे में आसानी नईंयाँ

सींचौ खूब पसीना हमनें
ख़ुशी मनौ हरयानी नईंयाँ

किसा,कहानी को कै रऔ अब
दादी मर गईं नानी नईंयाँ

काल मिली तौ हती ज़िन्दगी
मनौ सुगम बतयानी नईंयाँ