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"रोने में इक ख़तरा है तालाब नदी हो जाते हैं / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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हंसना भी आसान नहीं है, लब ज़ख़्मी हो जाते हैं
  
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इस्टेसन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
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पत्ते देहाती रहते हैं, फल शहरी हो जाते हैं  
  
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बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा  है
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रहते-रहते इस्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं
  
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16:33, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

रोने में इक ख़तरा है, तालाब नदी हो जाते हैं
हंसना भी आसान नहीं है, लब ज़ख़्मी हो जाते हैं

इस्टेसन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं, फल शहरी हो जाते हैं

बोझ उठाना शौक कहाँ है, मजबूरी का सौदा है
रहते-रहते इस्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं

सबसे हंसकर मिलिये-जुलिये, लेकिन इतना ध्यान रहे
सबसे हंसकर मिलने वाले, रुसवा भी हो जाते हैं

अपनी अना को बेच के अक्सर लुक़्म-ए-तर की चाहत में
कैसे-कैसे सच्चे शाइर दरबारी हो जाते हैं