रोमपाद / रोमपाद / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
गंगा के खलखल धारा में
किसिम-किसिम के बोहित,
अंगदेश के सुन्दरता सें
स्वर्गलोक भी मोहित।
गजराजोॅ से तिगुना ऊँच्चोॅ
बरगद, पाकड़, पीपल,
जेकरोॅ छाया के नीचू में
वैशाखो तक शीतल।
जगह-जगह पर मंदिर बनलोॅ
जगह-जगह चौबटिया,
जगह-जगह पर झील-सरोवर
आश्रम आरो कुटिया।
घड़ीघण्ट के नाद हवा में
गूंजै, जों, घन बाजै,
वही नाद पर नाद शंख के
जाय केॅ तुरत विराजै।
धूनी कहीं रमैलोॅ छे तेॅ
कहीं हवन कुण्डोॅ में,
वन-उपवन में बाघ-सिंह तेॅ
हिरण कहीं झुण्डोॅ में।
कहीं-कहीं गजराज श्वेत भी
श्याम गजोॅ के संग में,
टकराबै छै पर्वत नाँखी
मस्त रहेॅ जों भंग में।
जेकरोॅ चीग्घाड़ोॅ सें दलकै
की धरती, आकाशो,
जीव-जन्तु के मौज रहै छै
जैठाँ बारह मासो।
छहो ऋतु के राज जहाँ छै
नवो रसो के गान,
आठो सिद्धि जहाँ उमड़ै छै
नवो निधियों के मान।
जहाँ चित्त चंचलता छोड़ी
विभु में लीन रहै छै,
वही मालिनी केॅ, अंगोॅ रोॅ
हिरदय-हार कहै छै।
जे अंगोॅ के अधिपति, पुरपति
तीनों ताप हरै छै,
जेकरोॅ यश केॅ याद करोॅ, तेॅ
निर्मल प्राण करै छै
अंगदेश के ऊ राजा के
नाम भुवन विख्यात,
जेकरोॅ यश से धवल दिवस की
मणि रं चमके रात।
रोमपाद सेॅ कथा पुरातन
अभियो नवल धवल छै,
जत्तेॅ कि कोशी-गंगा के
जल निर्मल, खलखल है।
जेकरोॅ कथा कही केॅ युग ई
चन्दन रं महकै छै।
कभी चिड़ैया रं चहकै, तेॅ
हवनो रं लहकै छै।
विनय-शौर्य के बलशाली जे
दशरथ-सखा अनोखा,
अंगभूमि पर जेकरोॅ गाथा
संरगोॅ में पनसोखा।
जेकरोॅ शासन गंगे नाँखी
निर्मल, पावन, कलकल,
जेकरोॅ शौर्य, वचन-रीति सब
चानन के जल छलछल।
जेकरोॅ बेटी शांता आरो
ऋषि शृंगी दामाद,
जिनके सतकर्मो से मिटलै
दशरथ रोॅ अवसाद।
अंगदेश के रोमपाद के
धर्मग्रंथ गुण गावै,
जेकरोॅ पुण्यकथा केॅ सुमरी
कलियुग पाप मिटाबै।
बाल्मीकि आ व्यास ऋषि केॅ
हम्में गुण छी गावौ,
हुनके गेलोॅ कथा पुरात
फेनू सें दुहराबौं।
चमकै भारत अंग फिनू सें
चम्पा के सुख फैलेॅ,
रोमपाद के चरित कीर्त्ति केॅ
निकलेॅ कलियुग गैलेॅ।