भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहर तीर पर पहुँचकर ख़ुशी से चिल्लायी, -- / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:34, 17 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कस्तूरी कुंडल बसे / गुला…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लहर तीर पर पहुँचकर ख़ुशी से चिल्लायी, --
'मैं जीवन की बाज़ी जीत गयी,'
तभी सागर के तल से आवाज़ आयी--
'अब लौट भी आ,
तेरी अवधि बीत गयी!'