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लाइब्रेरी में किसी की प्रतीक्षा / महेश आलोक

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हम आते हैं प्रतीक्षा करते हैं
हम बैठते हैं प्रतीक्षा करते हैं

प्रतीक्षा की चोर चाल में आते हैं
बैठते हैं हम

हम प्रतीक्षा करते हैं बैठते हैं कुर्सी की नींद में
नींद में प्रतीक्षा करती लकड़ी की आग में
बैठते हैं हम

पतिकाओं में चाय बेचती लड़की से मारते हैं गप्पें
और अंत में न चाहते हुए भी माँग लेते हैं उससे
एक प्याली चाय

किसी पृष्ठ पर धीमी गति से सुबह सुबह दौड़ती लड़की
के जूतों से करते हैं मिलान अपने जूतों का
और प्रतीक्षा करते हैं

और इस समय यह सोचना गलत नहीं लगता
कि लाइब्रेरी में होना चाहिये अलग से एक शानदार कमरा
कि पलँग पर सोकर की जा सके प्रतीक्षा
कि स्क्रीन हो अलग से जिस पर चले कोई बेहतर फिल्म
प्रतीक्षा की

हम प्रतीक्षा करते हैं इसलिये जिन्दा हैं