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वक़्त का सिलसिला यों ही चलता रहा / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'
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वक्त का सिलसिला यों ही चलता रहा
और करता रहा बागियों को सलाम !
यों गुजरता रहा रात-दिन जुल्म से
हर बगावत से पाता नया इक मुकाम।
अपने–अपने समय के मेरे बागियो
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम !
हर बगावत ने जो भी नया कुछ रचा-
गीत, नग्मा, रुबाई, गजल को सलाम !
सिलसिलों को सलाम, मंजिलों को सलाम
आने वाले तेरे-मेरे कल को सलाम !
साल का एहतेराम