"वह भी तो इक बेटी ही है / अनिल कुमार मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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19:17, 12 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
जेठ माह की,
जैसे बदली,
वह भी तो इक बेटी ही है।
उँगली पकड़-पकड़ कर बढ़ना,
चलना यहाँ सिखाया जिसको,
दो पाए से चौपाया बन,
अपनी पीठ बिठाया जिसको,
आड़े-तिरछे झुक जाने पर,
टिक-टिक करते रुक जाने पर,
बाल खींच कर,
जो है झगड़ी,
वह भी तो इक बेटी ही है।
जेठ माह की,
जैसे बदली,
वह भी तो इक बेटी ही है।
आह्लादित हो अस्पताल में,
जिसने अपना कटा कलेजा,
उनकी जान बचाने खातिर,
पापा के सीने में भेजा,
सारी दुनियाँ से यह कह कर,
बची पिता की छाया सर पर,
गले लगी,
मुस्काई पगली,
वह भी तो इक बेटी ही है।
जेठ माह की,
जैसे बदली,
वह भी तो इक बेटी ही है।
मरघट सा घर बना दिया जो,
झुके शीश, पनियाईं आँखें,
उड़ती जैसे चिता भस्म सी,
जलते अरमानों की राखें,
कहने को कोई कुछ कह ले,
गढ़ने को कोई कुछ गढ़ ले,
सरे बजार,
उछाली पगड़ी,
वह भी तो इक बेटी ही है।
जेठ माह की,
जैसे बदली,
वह भी तो इक बेटी ही है।