भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विद्या ददाति / प्रमोद कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:10, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अपना ध्यान पल भर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपना ध्यान पल भर भी बँटने न दो

अगल-बगल बिल्कुल न देखो
अँधे बन जाओ,

कोई पुकारे
बहरे हो जाओ,

किसी की सहायता में न दौड़ो
लँगड़े हो जाओ,
भूल जाओ हाथ बँटाना
लूले हो जाओ,

देखना, सुनना, साथ देना
बाधक हैं आज की पढ़ाई में,

भविष्य की दुनिया के निर्माता प्यारे बच्चों !
आगे बढ़ने के एक मात्र लक्ष्य पर
अडिग रहो,
आज की प्रतियोगिता में
अँधापन, गूँगापन भी शामिल हैं ।