भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वीर तुम बढ़े चलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
 
|रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
}}वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
+
}}
 
+
<poem>
 
+
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
+
 
+
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के नहीं
+
  
 +
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
 +
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
  
 
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  
 
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  
 
 
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  
 
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  
 
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
  
 
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ  हो
 
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ  हो
 
 
सूर्य  से बढ़े चलो चन्द्र  से बढ़े चलो
 
सूर्य  से बढ़े चलो चन्द्र  से बढ़े चलो
 
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
  
 
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
 
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
 
 
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
 
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
 
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
  
 
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
 
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
 
 
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
 
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
 
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 +
</poem>

16:39, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !