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"वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं / हसरत जयपुरी" के अवतरणों में अंतर

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वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं <br><br>
 
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09:36, 14 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

वो अपने चेहरे में सौ आफ़ताब रखते हैं
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं

वो पास बैठें तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं

हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं

जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं