भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यक्ति बनाम तंत्र / अर्पण कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:09, 27 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्पण कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह बेहद कमजोर इंसान था
मगर कुछ परिस्थितियों के तहत
व्यवस्था उसके अनुकूल हो गई है
अब वह
सब पर शासन करना
चाहता है
मैं यह सब देख
और सोच रहा हूँ

उसे परास्त/चुप करने के लिए
पहले उसका तंत्र
दुर्बल करना होगा |