भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यथै व्यथा छ मनभरि खुशी खोजूँ कतातिर ? / रवि प्राञ्जल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 6 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवि प्राञ्जल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्यथै व्यथा छ मनभरि खुशी खोजूँ कतातिर ?
साउन भदौ छ गहभरि नदी खोजूँ कतातिर ?

आरु फुल्यो बैशाखमा पीडा फुल्यो मुटुभरी
चरो परेछ जालमा चरी खोजूँ कतातिर ?

मुटु चिरी बनाऊँ कि, रातो रगतको मसी
मेरो कथा लेखूँ कहाँ? मसी खोजूँ कतातिर ?

आगो पनि छ छातीमा, हूरी पनि छ छातीमा
चट्टान भैm अडिग जिन्दगी खोजूँ कतातिर ?

यो भीडमा हरायो कि, त्यो पीरमा हरायो कि
त्यो मेघ जस्तै गर्जने ‘रवि’ खोजूँ कतातिर ?