भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्दों से ढका हुआ है सब कुछ / राजेन्द्र राजन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:37, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र राजन }} मेरे मन में नफरत और गुस्से की ...)
मेरे मन में
नफरत और गुस्से की आग
कुंठाओं के किस्से
और ईर्ष्या का नंगा नाच है
मेरे मन में
अंधी ,महत्त्वाकांक्षाएं
और दुष्ट कल्पनाएं हैं
मेरे मन में
बहुत-से पाप
और भयानक वासना है
ईश्वर की कृपा से
बस यही एक अच्छी बात है
कि यह सब मेरी सामर्थ्य से परे है ।