भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहद हुए एक बूँद हम / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 29 जनवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हित साधन
सिद्ध मक्खियाँ
आसपास घूमन लगीं
परजीवी चतुर चीटियाँ
मुख अपना चूमने लगीं
दर्द नहीे हो पाया कम
शहद हुए एक बूँद हम

मतलब के
मीत सब हमें
ईश्वर-सा पूजते रहे
कानो में
शब्द और स्वर
श्लाघा के कूजते रहे
मुस्काती ऑंख रही नम
शहद हुए एक बूँद हम

सब कुछ भी जान बूझकर
बाँट रहे सिर्फ प्यार को
बाती से दीप में जले
मेट रहे अन्धकार को
सूरज-सा पीते हैं तम
शहद हुए एक बूँद हम