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शीतल / राखी सिंह

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घाव के चिन्हों से पटी पड़ी काया पर
किसी अप्रत्याशित घात के निमित
अंश मात्र भी
स्थान शेष नही

तुम्हारी पैठ का अनुमान
तुम्हारे धँसाये शूल से हुआ

मेरी तरह
क्या तुम्हें भी आश्चर्य नही
कि इन मवादों के लिए
मैं तुम्हारे ही ओठों की
गर्म फूंक चाहती हूँ