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श्रावणी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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आशवर शीघ्र श्रावण मे औता पिया
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया
देखि हुनका सुखक मारि सहि ने सकब,
खसि पड़ब द्वारि पर ठाढ़ रहि ने सकब
पाशतर थीर छाती लगौता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया
भऽ उमंगित बहत आड़नक बात ई,
उल्लसित भऽ रहत चाननक गात ई
पाततर पिक बनल स्वर सुनौता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया
मन उमड़ि गेल बनि गेल यमुना नदी,
तन सिहरि गेल जहिना कदंबक कली
श्वास पर धीर बंसुरी बजौता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया