भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री गणपति की याद में - 3 / पुष्प नगर / आदर्श

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 27 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आदर्श |अनुवादक= |संग्रह=पुष्प नगर /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन्दर सवारियों के बीच
जिसने पसंद किया
चूहे को-
वाहन के रूप में,
और दिया
तुच्छ को भी,
लघु को भी
गौरव अपरिमित।

देख कर अपने बड़े भाई
स्वामिकार्तिक को,
ललचा के बैठे मंजु मोर पर,
द्वेष नहीं माना,
मुसकाया भर
संगम बड़प्पन का-
बचपन का मान कर
वह अपूर्व शक्ति
वह सारे जगत का बन्धु
चूहे के माध्यम से

पहुँचा जो
कंगाल की कुटी में और
राजा के महल में,
संकट में फंसे
मानवों के जाल काटने।

विघ्नों का विनाशक
विनायक यह
मेरा भी सहायक हो
चरणों में प्रणाम मेरा
शत-शत स्वीकार करें।