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"श्रृंगार कर ले री सजनि! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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श्रृंगार कर ले री सजनि!
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सखि! सिहर उठती रश्मियों का
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हिम-स्नात कलियों पर जलाये
नव क्षीरनिधि की उर्म्मियों से<br>
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मधु-गीत मतवाली अलिनि!
पहिन अवगुण्ठन अवनि!<br><br>
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तू स्वप्न-सुमनों से सजा तन
जुगनुओं ने दीप से;<br>
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ले मधु-पराग समीर ने<br>
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गाती कमल के कक्ष में<br>
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अलि! मिलन-गीत बने मनोरम
मधु-गीत मतवाली अलिनि!<br><br>
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नूपुरों की मदिर ध्वनि!
  
तू स्वप्न-सुमनों से सजा तन<br>
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इस पुलिन के अणु आज हैं
विरह का उपहार ले;<br>
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भूली हुई पहचान से;
अगणित युगों की प्यास का<br>
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आते चले जाते निमिष
अब नयन अंजन सार ले?<br>
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मनुहार से, वरदान से;
अलि! मिलन-गीत बने मनोरम<br>
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अज्ञात पथ, है दूर प्रिय चल
नूपुरों की मदिर ध्वनि!<br><br>
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भीगती मधु की रजनि!
 
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श्रृंगार कर ले री सजनि?
इस पुलिन के अणु आज हैं<br>
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आते चले जाते निमिष <br>
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अज्ञात पथ, है दूर प्रिय चल<br>
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भीगती मधु की रजनि!<br>
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श्रृंगार कर ले री सजनि?<br><br>
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22:06, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

श्रृंगार कर ले री सजनि!
नव क्षीरनिधि की उर्म्मियों से
रजत झीने मेघ सित,
मृदु फेनमय मुक्तावली से
तैरते तारक अमित;
सखि! सिहर उठती रश्मियों का
पहिन अवगुण्ठन अवनि!

हिम-स्नात कलियों पर जलाये
जुगनुओं ने दीप से;
ले मधु-पराग समीर ने
वनपथ दिये हैं लीप से;
गाती कमल के कक्ष में
मधु-गीत मतवाली अलिनि!

तू स्वप्न-सुमनों से सजा तन
विरह का उपहार ले;
अगणित युगों की प्यास का
अब नयन अंजन सार ले?
अलि! मिलन-गीत बने मनोरम
नूपुरों की मदिर ध्वनि!

इस पुलिन के अणु आज हैं
भूली हुई पहचान से;
आते चले जाते निमिष
मनुहार से, वरदान से;
अज्ञात पथ, है दूर प्रिय चल
भीगती मधु की रजनि!
श्रृंगार कर ले री सजनि?