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संघर्षरत बीज / कविता भट्ट

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एक बीज उगा- वृक्ष बन गया,
उसने विशेष परिश्रम नहीं किया।
उसे बीज से वृक्ष बनाने के लिए,
उत्तरदायी- मात्र प्राकृतिक कृपा।
अब वह वृक्ष हो गया पर्वतनुमा,
लेकिन उसने अपने आसपास।
कोई भी पौधा तक पनपने न दिया,
जबकि बहुत से बीज कर रहे थे
परिश्रम-संघर्ष; वृक्ष बनने के लिए;
इस घटना का साक्षी है समय।
लोग इस तथ्य से परिचित हैं-
किन्तु फिर भी वृक्ष को पूज रहे;
निज स्वार्थों के लिए दिन-रात
उन असंख्य बीजों का क्या?
जिनको इसने पनपने न दिया-
अपने अभिमान की खातिर।
संघर्षरत बीज भी होंगे पूजनीय?
या करनी होगी प्रतीक्षा मृत्युपर्यंत?
क्योंकि यदि बीज वृक्ष न बने तो;
मर ही जाएँगे- सिसकते-रोते हुए;
प्राकृतिक कृपा के लिए तरसते हुए।
दुःखद- वृक्ष न बन सके बीज का;
संघर्ष इतिहास में दर्ज नहीं होगा।