भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संघर्ष / अंतराल / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...)
 
छो (संघर्ष (अंतराल) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर संघर्ष / अंतराल / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

14:59, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण


छाया सघन अँधेरा पथ पर
लगता एकाकीपन दूभर,
झ×झा के उन्मत्त प्रहारों से
होता प्रखर विध्वंसक स्वर,
नव बल संचित हो प्राणों में
संघर्ष प्रकृति से नया-नया !

मंज़िल है बेहद दूर अभी
और अपरिचित मार्ग पड़ा है,
लक्ष्य ओर प्रेरित चरणों का
गतिमय संयम बड़ा कड़ा है,
राह विषम, प्रति निमिष मनुज का
संघर्ष प्रकृति से नया-नया !

शून्य गगन में प्रलय-बाढ़ से
घिरते जाते बादल के दल,
प्रत्यावर्तन दुर्बलता है
चलना ही है जीवन केवल,
घन गर्जन, चपला नर्तन है
संघर्ष प्रकृति से नया-नया !
1945