भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखी री लाज बैरण भई / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:58, 11 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} राग जौनपुरी सखी री लाज बैरण भई।<br> श्रीलाल ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग जौनपुरी

सखी री लाज बैरण भई।
श्रीलाल गोपालके संग काहें नाहिं गई॥

कठिन क्रूर अक्रूर आयो साज रथ कहं नई।
रथ चढ़ाय गोपाल ले गयो हाथ मींजत रही॥

कठिन छाती स्याम बिछड़त बिरहतें तन तई।
दासि मीरा लाल गिरधर बिखर क्यूं ना गई॥

शब्दार्थ :- बैरण = बैरिन, बाधा पहुंचानेवाली। नई = रथ जोतकर। तन तई =देह जल गई