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सगपण : दो / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

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निराकार आंधी ई
दीन्हौ ओ रूप
लखीजै जकौ धोरौ।

आंधी नीं
आ आतमा है
आज अठै
कालै कठै
बसेरौ नवी काया
नवो रूप
बेसकां क्यूँ
थूं रूंखड़ा!