भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सबसे आँखें तो चार करते हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम | हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम | ||
− | + | ज़िन्दगी का सिँगार करते हैं | |
कोई आये न आये, नाव को हम | कोई आये न आये, नाव को हम |
19:09, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
सबसे आँखें तो चार करते हैं
दिल में बस उनको प्यार करते हैं
वादा आने का कर गया था कोई
उम्र भर इंतज़ार करते हैं
हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम
ज़िन्दगी का सिँगार करते हैं
कोई आये न आये, नाव को हम
है जिधर तेज धार, करते हैं
रुक न पाती गुलाब की ख़ुशबू
आड़ काँटें हज़ार करते हैं