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"सबसे आँखें तो चार करते हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम  
 
हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम  
जिन्दगी का सिँगार करते हैं
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ज़िन्दगी का सिँगार करते हैं
  
 
कोई आये न आये, नाव को हम  
 
कोई आये न आये, नाव को हम  

19:09, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


सबसे आँखें तो चार करते हैं
दिल में बस उनको प्यार करते हैं

वादा आने का कर गया था कोई
उम्र भर इंतज़ार करते हैं

हैं तो बुझते दिये मज़ार के हम
ज़िन्दगी का सिँगार करते हैं

कोई आये न आये, नाव को हम
है जिधर तेज धार, करते हैं

रुक न पाती गुलाब की ख़ुशबू
आड़ काँटें हज़ार करते हैं