भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समझ नर मन से सब कोई हारा / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} <poem> समझ नर मन से सब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
समझ नर मन से सब कोई हारा।
बडे-बड़े राजा महाराजा, देव दनुज जग सारा।
बनवासी तपसी भी हारे, हार गये तन गोरे कारे,
दश हजार गजबल वारे भी, नागराज अहि कारा।
मन के कारन पड़े भरम में, क्या जाने क्या लिखा करम में,
समझदार व्रत तीरथवारे, मरा न मन, मन ही ने मारा।
बरषो़ जुगों हीं साधन साधा, मन है मन तो सबका दादा,
एक छनक में धूर उड़ा दे, चले न कोई चारा।
कहे शिवदीन संत की दाया, जिस पर भी होजाये भाया,
वह कोई जीते मन को जीते, है वही प्रभु का प्यारा।