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सम्बत / पतझड़ / श्रीउमेश

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बाँस बड़ेरी, लकड़ी-काठी, गोइठा ढेर लगैलेॅ छै।
कुछु माँगी चाँगी लानलेॅ छै, बाकी काठ चोरैलेॅ छै॥
यै डेढ़िया पर सम्बत जरतै गैतै जोरोॅ सें गारी।
बिरना फुकतेॅ आगिन, आरु देतै ई सम्बत जारी॥
राग-रंग के ढंग बदललै, आबेॅ नै छै होली-फाग।
हहरी-हहरी सम्बत जरलै, साल तमामी लेखा लाग॥