भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सलीब / नूपुर अशोक

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 14 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूपुर अशोक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक़्त ने
मेरे सामने एक सलीब रख दी
मैंने सलीब पर खुद को टाँग कर
कीलें ठोक दीं
और हर कील के साथ कहा
“खुदा मुझे कभी माफ़ मत करना
क्योंकि मुझे मालूम है
मैं क्या कर रही हूँ”