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चीरहरण करती है दिल्ली
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रचनाकार: [[जयकृष्ण राय तुषार]]
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गर चुल्लू भर  
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बची रहेगी केवल  
 
बची रहेगी केवल  
 
इटली का गुणगान करो ।
 
इटली का गुणगान करो ।
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15:34, 25 दिसम्बर 2012 का अवतरण

चीरहरण करती है दिल्ली

यमुना में
गर चुल्लू भर
पानी हो दिल्ली डूब मरो ।
स्याह ... चाँदनी चौक हो गया
नादिरशाहो तनिक डरो ।

नहीं राजधानी के
लायक
चीरहरण करती है दिल्ली,
भारत माँ
की छवि दुनिया में
शर्मसार करती है दिल्ली,
संविधान की
क़समें
खाने वालो, कुछ तो अब सुधरो ।

तालिबान में,
तुझमें क्या है
फ़र्क सोचकर हमें बताओ,
जो भी
गुनहगार हैं उनको
फाँसी के तख़्ते तक लाओ,
दुनिया को
क्या मुँह
दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो ।

क्राँति करो
अब अत्याचारी
महलों की दीवार ढहा दो,
कठपुतली
परधान देश का
उसको मौला राह दिखा दो,
भ्रष्टाचारी
हाक़िम दिन भर
गाल बजाते उन्हें धरो ।

गोरख पांडेय का
अनुयायी
चुप क्यों है मजनू का टीला,
आसमान की
झुकी निगाहें
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
इस समाज
का चेहरा बदलो
नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।

गद्दी का
गुनाह है इतना
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
दु:शासन हो
गया प्रशासन
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी
बची रहेगी केवल
इटली का गुणगान करो ।