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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : ना तीर न तलवार से मरती है सचाई ('''रचनाकार:''' [[उदयप्रताप सिंह]])</div>
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</td>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
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जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई
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ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब
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<div style="text-align: center;">
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई 
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़
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सबमें अपनेपन की माया
बाग़े-बहार  बन  के  सँवरती  है  सचाई 
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अपने पन में जीवन आया
 
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रावण की बुद्धि, बल से न जो काम हो सके
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वो राम की मुस्कान से करती है सचाई
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</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया