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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : वतन का गीत  '''रचनाकार:''' [[गोरख पाण्डेय]] </div>
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</td>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
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नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो
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नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
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<div style="text-align: center;">
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
न हो कोई राजा न हो रंक कोई
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई
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सबमें अपनेपन की माया
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो
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अपने पन में जीवन आया
 
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न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
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न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो
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सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में
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कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो
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नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों
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नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो
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</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया