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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="text-align: center;">
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : लोहा  '''रचनाकार:''' [[एकांत श्रीवास्तव]] </div>
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
</td>
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</div>
</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ
+
अपरिचित पास आओ
लोहे से बचने के लिए नहीं
+
 
उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
जीने के लिए इस संसार में
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
रोज़ लोहा लेना पड़ता है
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
दूसरा इज़्ज़त के साथ
+
 
उसे खाने के लिए
+
सबमें अपनेपन की माया
एक लोहा पुरखों के बीज को
+
अपने पन में जीवन आया
बचाने के लिए लेना पड़ता है
+
</div>
दूसरा उसे उगाने के लिए
+
</div></div>
मिट्टी में, हवा में, पानी में
+
पालक में और ख़ून में जो लोहा है
+
यही सारा लोहा काम आता है एक दिन
+
फूल जैसी धरती को बचाने में  
+
</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया