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भाषा की लहरें</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
भाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहन
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
मैंने किया। मुझे मानव–जीवन की माया
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अपरिचित पास आओ
सदा मुग्ध करती है, अहोरात्र आवाहन
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सुन सुनकर धाया–धूपा, मन में भर लाया
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
ध्यान एक से एक अनोखे। सबकुछ पाया
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
शब्दों में, देखा सबकुछ ध्वनि–रूप हो गया ।
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
मेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
मुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
जीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ भाषा ।
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सबमें अपनेपन की माया
भाषा की अंजुली से मानव हृदय टो गया
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अपने पन में जीवन आया
कवि मानव का, जगा नया नूतन अभिलाषा ।
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भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,
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ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया