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हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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रचनाकार: [[दास दरभंगवी]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
लोटा भर पानी दुपहर में गुड़ के संग पिला दो जी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
चार शायरी लेकर मुझको मछली भात खिला दो जी
+
अपरिचित पास आओ
  
पायल कंगन कनबाली सब ले लो, ए डाक्‍टर साहेब !
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
किसी तरह मेरे बेटे को चंगा करो, जिला दो जी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
बरसों से पहना करते हैं वही एक पतलून-कमीज
+
सबमें अपनेपन की माया
अपने पैसे से मुझको तुम कपड़े नये सिला दो जी
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अपने पन में जीवन आया
 
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गाँव छोड़ कर शहर और परदेस चले जाते हैं लोग
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लोगों को अपने घर में ही कोई काम दिला दो जी
+
 
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सड़कें पानी बिजली रोटी रोज़गार का हाल बुरा
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बरगद जैसी जमी हुई सत्ता को जरा हिला दो जी
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया