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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक :ताकि सनद रहे''' रचनाकार : [[सदस्य:चंद्र मौलेश्वर‎]] </div>
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</td>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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कविताकोश के एक प्रमुख योगदानकर्ता
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श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012
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को देहांत हो गया।
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आप 18 अप्रैल 2009 को पहली बार
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<div style="text-align: center;">
कविताकोश से जुडे
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
और 21 जुलाई 2011 तक 600 से भी
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</div>
अधिक रचनाओं को इस कोश में जोडा
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आपने जो पहली रचना इस कोश में जोडी
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वह ऋषभ देव शर्मा जी की रचना
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गोलमहल थी और संग्रह था
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ताकि सनद रहे..... ।
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यह संयोग है कि 21 जुलाई 2011 को
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
अंतिम बार आपने कविताकोश पर
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
जिस रचना को जोडा
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अपरिचित पास आओ
वह भी ऋषभदेव शर्मा की ही रचना थी
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तेवरी काव्यान्दोलन..... ।
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कविताकोश से योगदानकर्ता के रूप में  
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जुडे रहने के दौरान आपने आरज़ू लखनवी,
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
सफ़ी लखनवी, सीमाब अकबराबादी, ‎
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
जिगर मुरादाबादी, ‎आसी ग़ाज़ीपुरी, ‎
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
अमजद हैदराबादी, ‎कविता वाचक्नवी,
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
यगाना चंगेज़ी, ‎ लेकर फ़ानी बदायूनी,
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
तक की शायरियों को जोडा ।
+
  
कविताकोश और उसके पढने वाले
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सबमें अपनेपन की माया
श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के योगदान को
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अपने पन में जीवन आया
हमेशा याद रखेंगे ।
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</div>
 
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</div></div>
ईश्वर ने आपके लिये स्वर्ग में स्थान
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सुनिश्चित किया हो इसी कामना के साथ
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सभी योगदानकर्ताओं की ओर से
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अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ।
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</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया