भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँझ-सबेरे / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 14 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रोज़ सवेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूँ-
क्यों कि रोज़ शाम को मैं थोड़ा-सा भविष्य में मर जाता हूँ।