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"साँझ ही स्याम को लेन गई सुबसी बन मे सब जामिनि जायकै / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर

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09:51, 30 जून 2009 का अवतरण

साँझ ही स्याम को लेन गई सुबसी बन मे सब जामिनि जायकै ।
सीरी बयार छिदे अँधरा उरझे उर झाँखर झार मझाइकै ।
तेरी सी को करिहै करतूति हुती करिबे सो करी तै बनाइकै ।
भोर ही आई भटू इत मो दुख दाइन काज इतो दुख पाइकै ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।