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"साकेत / मैथिलीशरण गुप्त / नवम सर्ग / पृष्ठ १३" के अवतरणों में अंतर

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हहह! उर्मिला भ्रान्त है, रहे,
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यह असत्य तो सत्य भी बहे।
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ज्वलित प्राण भी प्राण पागये,
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सुभग आगये, कान्त आगये!
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निकल हंस-से केकि-कुंज से,
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निरख वे खड़े प्रेम-पुंज-से!
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रुचिर चन्द्र की चन्द्रिका खिली,
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निज अशोक से मल्लिका मिली।
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अवधि होगई पूर्ण अन्त में,
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सुयश छा रहा है दिगन्त में।
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21:07, 12 फ़रवरी 2010 का अवतरण

हहह! उर्मिला भ्रान्त है, रहे,
यह असत्य तो सत्य भी बहे।
ज्वलित प्राण भी प्राण पागये,
सुभग आगये, कान्त आगये!
निकल हंस-से केकि-कुंज से,
निरख वे खड़े प्रेम-पुंज-से!
रुचिर चन्द्र की चन्द्रिका खिली,
निज अशोक से मल्लिका मिली।
अवधि होगई पूर्ण अन्त में,
सुयश छा रहा है दिगन्त में।