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सागर पर शाम / बलदेव वंशी

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चमचम बृहद आईना
तोड़ दिया
पत्थर मार
तमतमाये गुस्सैल सूर्य ने
और स्वयं ही
कतरा-कतरा बिखरी किरचों पर
अपनी एड़ियाँ लहूलुहान कर
रोते-रोते सो गया !