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"सात रंग / समीर बरन नन्दी" के अवतरणों में अंतर

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सात रंगों की गलबहीं
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सात रंगों की गलबहियाँ
आकाश को श्रृंगार किये दे रहे हैं ।
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आकाश का श्रृंगार कर रही हैं ।
  
एक गुरुत्त्वाकरषेनीय निराकार -
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एक गुरुत्त्वाकर्षनीय निराकार -
आँखों में भर रहा हूँ, मुँह फ़िराने से कहीं खो न जाय
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आँखों में भर रहा हूँ, मुँह फिराने से कहीं खो न जाए
  
 
रों रहा है मन, एक दाग याद आता है  
 
रों रहा है मन, एक दाग याद आता है  

00:36, 17 मई 2011 के समय का अवतरण

सात रंगों की गलबहियाँ
आकाश का श्रृंगार कर रही हैं ।

एक गुरुत्त्वाकर्षनीय निराकार -
आँखों में भर रहा हूँ, मुँह फिराने से कहीं खो न जाए ।

रों रहा है मन, एक दाग याद आता है
कि दाग पर दाग उग आता है ।

इन्द्रधनुष बनता है लुप्त होता है
एक कण धरकर नहीं रख पाता ।

जिसके अन्तर मे पैठ गया है दाग
वहीं बाँधता है जीवन को - जादू से ।

वहीँ खोजता है - पथ, सारी बाधाएँ ।
तुच्छ समझ, सपनों की खेता है नाव ।

हमारा विश्वास तैयार होता है इन सात रसायनों से
जो पार करता है सुदीर्घ जीवन ।