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साहस / राजूरंजन प्रसाद

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सागर का तट
छोटा पड़ जाता है
जब फैलाता हूं अपनी बांहें
सिमट आता है सारा आकाश
पर
आ नहीं पाता
बांह की परिधि में
अंदर का साहस।
(21.11.91)