भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो, मजे की बात! / योगेन्द्र दत्त शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:09, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो, मजे की बात, रे भैया
सुनो, मजे की बात!

हाथी दादा दबा रहे हैं
चींटी जी के पाँव,
चूहे जी के डर से भागी
बिल्ली अपने गाँव।

नए दौर की नई निराली
देखो यह सौगात!

रौब जमाता फिरता सब पर
नन्हा-सा खरगोश,
चीता सहमा हुआ खड़ा है
भूला अपने होश।

बाघ गँवाकर सारी ताकत
दिखा रहा अब दाँत!

राज नदारद, ताज उड़न-छू
है किस्मत का फेर,
कान पकड़कर उट्ठक-बैठक
लगा रहा है शेर।
हिरन महाशय जमा रहे हैं
थप्पड़, घूँसे, लात!

भालू, गीदड़ स्यार, लोमड़ी
रगड़ रहे हैं नाक,
खुलकर उड़ा रहे गर्दभ जी
उनका खूब मजाक।

एक छछूंदर दुनिया भर में
मचा रही उत्पात!