भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह से पहले आयी कली शाम / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>सुबह से पहले आयी कली शाम। यह तबाही बताओ लिखें किसके नाम? जिधर से…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह से पहले आयी कली शाम।
यह तबाही बताओ लिखें किसके नाम?

जिधर से गुजर रहे उजड़ रही बस्तियां,
वे कह रहे- करने आये फैजे-आम!

जिनकी निगाहे-करम से मिटते वजूद,
ऐसे फरिश्तों को तो दूर से सलाम!

पेशे-नज़र आज तरक्की के ढंग नये,
हो रहे अंधेरे भी रोशनी के नाम!

देखे आपके निजाम में दौर ऐसे,
भूल गये हम थे कभी किसी के गुलाम!