भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबू को दौर में लाओ बहार के दिन हैं / अब्दुल हमीद 'अदम'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबू को दौर में लाओ बहार के दिन हैं
हमें शराब पिलाओ बहार के दिन हैं

ये काम आईन-ए-इबादत है मौसम-ए-गुल में
हमें गले से लगओ बहार के दिन हैं

ठहर ठहर के न बरसो उमड़ पड़ो यक दम
सितमगरी से घटाओ बहार के दिन हैं

शिकस्ता-ए-तौबा का कब ऐसा आयेगा मौसम
'अदम' को घेर के लाओ बहार के दिन हैं