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"सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह= नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
 
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सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये
 
सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये

13:44, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये
गुनगुना कर वो भंवरे भी क्या कह गये

इस तरह भी इशारों में बातें हुई
लफ़्ज़ सारे धरे के धरे रह गये

नाख़ुदाई का दावा था जिनको बहुत
रौ में ख़ुदा अपने जज़्बात की बह गये

लब, कि ढूँढा किये क़ाफ़िये ही मगर
अश्क आये तो पूरी ग़ज़ल कह गये

'महरिष' उन कोकिलाओं के बौराए स्वर
अनकहे, अनछुए-से कथन कह गये.