भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सौनचिड़ी / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>सौन चिङकली क्यूं थूं गुमसुम क्यों जीव तङफावै, मन री कह दै हळकी ह…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>सौन चिङकली
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= रवि पुरोहित
 +
}}
 +
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita‎}}<poem>सौन चिङकली
 
क्यूं थूं गुमसुम
 
क्यूं थूं गुमसुम
 
क्यों जीव तङफावै,
 
क्यों जीव तङफावै,

05:15, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण

सौन चिङकली
क्यूं थूं गुमसुम
क्यों जीव तङफावै,
मन री कह दै
हळकी हुयज्या
क्यूं जूण रळकावै ?
पग-पग छेङै
बैठ्या बैरी
स्यान कचोवैला थारी,
लोक लाज री चूंदङी में
पछै नीं लागै कारी ।
मादा नांव सुणीज्यो चाहीजै
काटक गिरझ पङै घणां,
भाव-भावना खङ्या बिसूरै
मनगत रोवै झरां-झरां....... ।
आं तिलां में तेल कोनी
दुख घणी थू पावैली,
आज थूं राणी
काल रांड बण
आखी उतर कुरळावैली ।
आ जूण
गळैङी कांबळ
ठा नीं कित्ता सळ पङै,
बिल-बाम्ब्यां सूं सुळ्यौ जमारो
ठा नीं कुण कद छळ बङै ?
मान बावळी थूं सुखी है
खुलै आभै उरळावै,
जीवत जाळोटां री बस्ती
मिनख चींत गरळावै ।