भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सौन्दर्य का एक क्षण / वीरेन्द्र कुमार जैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 8 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार जैन |संग्रह=कहीं और / वीरेन्द्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सर्दी की सुबह :
कॉलेज के बरामदे में,
ताश-चिड़ियानुमा जाली,
उसमें झलमलाती हरियाली पत्राली :
इस ओर चिड़ियों की
धूप-छाया चित्राली।
...यह क्षण चित्रित था मेरे भीतर
कहीं बहुत दूर :
वक़्त के पहले कहीं और।
वक़्त में होना किस क़दर दिलचस्प है,
उसकी हदों तक जाने के सफ़र के लिए!

...प्याला बेशक टूट गया
हाथ से गिरकर :
मगर साबुत है प्याला वहाँ
जहाँ मैं हूँ आख़िर!


रचनाकाल : 20 नवम्बर 1975, कॉलेज परीक्षा-हॉल